मंगलवार, 1 नवंबर 2011

प्रेम सूत्र स्वामी श्री शरणानंद जी द्वारा

सूत्र:-


प्रेम तभी तब जीवित रहता है जब तब प्रेमी को ये भास ना हो की वो प्रेमी है|
प्रेम प्रेमी को खा कर पुष्ट होता है||


भावार्थ (पूज्य मोरारी बापू जी द्वारा):-
प्रेम प्रेमी को खा कर पुष्ट होता का अर्थ है की प्रेम मनुष्य के अहंकार का भक्षण करता है| अहंकार समाप्त हुए बिना प्रेम का प्रादुर्भाव हो ही नहीं सकता| ये अहंकार ही है जो की मै को मानता है और कहता है की मै प्रेमी हूँ, मै ये हूँ, मै वो हूँ, आदि आदि ||

अगर प्रेमी को ये भास हो जाए की वो प्रेमी है यानि की उसमे मै का प्राकट्य हुआ जो की अहंकार का बीज है| अहंकार के रहते हुए प्रेम नहीं रह सकता इसीलिए स्वामी शरणानंद जी ने कहा है की प्रेम तभी तक जीवित रहता है जब तब प्रेमी को ये भास ना की वो प्रेमी है||

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

श्री गणपति-वन्दन

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरै: सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्।।